डॉ. मनोज यादव द्वारा साझा किया गया यह अनुभव मानवीय जिजीविषा, चिकित्सा विशेषज्ञता और दृढ़ निश्चय की प्रेरणादायक कहानी है। यह कहानी एक 80 वर्षीय वृद्ध महिला की है, जो इमरजेंसी में गंभीर पेट दर्द की शिकायत के साथ अस्पताल में भर्ती हुई थीं। प्रारंभिक जांच में आंत फंसने का संदेह हुआ और सर्जरी का निर्णय लिया गया। सर्जरी के दौरान डॉक्टरों को पता चला कि लगभग 4 फीट आंत सड़ चुकी थी, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई। यह लगभग असंभव सा लग रहा था कि इस स्थिति से उबर पाना संभव होगा, और सर्जरी टीम निराश हो गई थी।
सिर्फ 2 फीट आंत बचने के बाद, शारीरिक रूप से यह स्पष्ट था कि मरीज को “शॉर्ट बाउल सिंड्रोम” जैसी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा, जिससे जीवित रहना बेहद कठिन हो सकता था। घरवालों और डॉक्टरों के मन में नाउम्मीदी छा गई थी। लेकिन, जैसा कि कहते हैं “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत,” इस महिला की अदम्य जिजीविषा ने चमत्कार कर दिखाया। ICU में उनकी स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होता गया, और उनकी रिकवरी एक आश्चर्यजनक मोड़ पर आ गई जब उन्होंने 15 दिन बाद भोजन लेना शुरू कर दिया। जहाँ सुपरस्पेशलिस्ट्स ने कहा था कि भोजन टिक नहीं पाएगा, वहीं उनके शरीर ने इस बात को झुठला दिया और कुछ ही दिनों में उनकी स्थिति सामान्य हो गई।
यह एक अद्वितीय उदाहरण है कि जीवन की इच्छा और आत्मविश्वास कितने बड़े चमत्कार कर सकते हैं। डॉक्टरों की टीम, जिसमें डॉ. मनोज यादव और उनका अस्पताल परिवार शामिल था, ने भले ही मेडिकल इंटरवेंशन के रूप में अपना कर्तव्य निभाया हो, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में महिला की जीवटता सबसे बड़ी विजेता साबित हुई।
अब, इस अद्भुत महिला ने घर वापस जाने की इच्छा जताई है, जो उनकी जीवन शक्ति और हिम्मत की जीत का प्रतीक है। डॉ. मनोज यादव और उनकी टीम ने इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में जो भी चिकित्सा सहायता प्रदान की, वह केवल एक साधन था, जबकि असली जीत उस महिला की थी, जिसने हर विपरीत परिस्थिति के बावजूद अपने जीवित रहने की इच्छा को जीवित रखा।
यह प्रेरणादायक कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं और यह दर्शाती है कि जीवन में चुनौतियों के सामने हार मानने के बजाय लड़ने की जिजीविषा ही हमें जीत दिलाती है।